Monday 5 December 2011

जरुरत बना दिया..

अनगढ़े एक पत्त्थर को मूरत बना दिया,
उसे तराशा और सबसे खूबसूरत बना दिया
मालूम न थी कीमत खुद की मगर, उसे
मंदिर में बिठाकर सबकी जरुरत बना दिया..

एक नयी सुबह



सूरज की पहली किरण के साथ
आँख खुलते ही ज्योंहीं
मैंने खिड़की का पर्दा हटाया
देखा सूरज की रोशनी
बादलो को चीरती हुई वृक्ष के बीच से
छन कर मेरे चेहरे पर आ पसरी
एक नयी चमक के साथ
एक नयी उम्मीद के साथ
पूरे कमरे में उजाला कर गई,
मानों किरणों की चादर ने
अंधेरो की खामोशियों को ढक लिया हो जैसे
बीते कल की सारी चिंताओं को खुशियों की चादर ने
अपने भीतर समेट लिया हो,
सारी कायनात एक नयी रोशनी के साथ जगमगा उठी
एक नयी सुबह के नए सफ़र के साथ,
प्रकृति के इस सुन्दर सन्देश के साथ ही
मैं उठी और धन्यवाद दिया उस भगवान को
जिन्होंने प्रकृति के कई रूपों द्वारा
हमें जीवन जीने का सन्देश दिया,
आशाओ की ज़मी और उमंगो का आसमां दिया....
हर नयी सुबह के साथ एक नया पैगाम दिया.

आंसू



*सुख और दुःख में बहते आंसू
सदा संग ही रहते आंसू
ख़ुशी का पल या गम की आंधी
हर अहसास में बहते आंसू,
*तन्हाई में रहते आंसू
कभी-कभी तो छलते आंसू
दिल की दीवारे भेद कर
छलक के फिर बहते आंसू,
*बिछड़ के आ जाते आंसू
मिलन में न रुक पाते आंसू
बहते आंसू जब क़ोई पौंछे
राज़ बयां कर जाते आंसू,
*ख़ुशी के हो या गम के आंसू
एक से होते है ये आंसू
बड़ी अनोखी इनकी भाषा
कहे बिना सब कहते आंसू...

''एक अकेला'

उसकी झील सी आँखों में
ना जाने क्या बात थी,
सबसे जुदा वो
तन्हा और उदास थी,
महसूस किया मैंने शायद
किसी अपने की तलाश थी,
तोडा है दिल किसी ने,
या खुद से ही निराश थी,
उन आँखों के उदास पन्नो में
सवाल उलझ कर रह गये
ख़ामोशी में लिपटे पन्ने
जाने क्या-क्या कह गए,
फिर सूनी आँखों से
जब सारे आंसू बह गये
बिन कहे ही उसके दर्द की
सारी कहानी कह गये ..

''गरीबी का दर्द ''





आँगन में फटी चटाई
एक टूटी सी चारपाई
भूख से बच्चे बिलख रहे है
और चूल्हा फूंकती माई,
भूखे बच्चो की रुलाई
हाय कैसे करे भरपाई
बीमारी ने डेरा डाला
और मार गई महंगाई,
अभिशप्त गरीबी आई
ये कैसी उदासी लाई
हर ख़ुशी को तरसे नैना
ये है कडवी सच्चाई,
रब ने सारी दुनिया बनाई
भेद ये कैसा, कैसी खुदाई
दर्द गरीबी का है या
है किस्मत की बेवफ़ाई

Saturday 24 September 2011

मोहब्बत



मोहब्बत की आग में जब जिस्म पिघल जाते है

तो जलने का भी आभास नहीं होता,

राख हो जाती है सारी निशानियाँ

और मिटने का भी अहसास नहीं होता....

कब तक चलेगा ये सफ़र.......



मंजिल की कशमकश में

उलझ गये है इस कदर

हर तरफ है चौराहा

जाएँ तो जाएँ किधर,

तलाशने निकले सुकूं

भटक रहे है दर ब दर

जहाँ मिलेगी आरज़ू

जाने कहाँ है वो डगर,

दुनिया की इस भीड़ में

खोये हुए है बेख़बर

गुमराह हो गए रास्तों पर

कब तक चलेगा ये सफ़र,

मंजिल की जुस्तजू में हम

चलते रहेंगे उम्र भर

ख्वाहिशो का काफ़िला ये

रुकने न पायेगा मगर,

मुमकिन है ज़िंदगी को

मिल जाये मंजिल अगर

अंजाम हसरतों का ये

थमेगा उसी मोड़ पर...

रेनू सिरोया

Wednesday 10 August 2011

दिल तो होता ही टूटने के लिए है.....

यूँ तो ये दिल कई बार टूटा है,

कभी अपनों से तो कभी सपनो से

कभी बेगानों से तो

कभी चाहत के दीवानों से

कभी बिखरे अरमानो से

दिल टूटता रहा हम जोड़ते रहे

बार- बार

ये बिखरता रहा और हम संवारते....रहे

बार- बार

लेकिन किसी से शिकवा नहीं

गिला नहीं क्योकि -

दिल तो होता ही टूटने के लिए

कभी तन्हाइयो से तो

कभी रुसवाइयो से टूटा है दिल

कभी ख्वाबों खयालों से टूटा ये दिल

दिल टूटता रहा हम जोड़ते रहे

बार - बार

क्योकि हम जानते है.....

दिल तो होता ही टूटने के लिए है.....

दर्द ही जिंदगी के उपहार हो जाये...

दर्द से हमे इस कदर प्यार हो जाये

कि फिर मौत का भी भय न रह जाये

जिंदगी जिये दर्द की सौगात समझकर

कि सिवा दर्द के कुछ और न रह जाये

जिंदगी का यूँ मौत से दीदार हो जाये

कि सामना हो जब तो पहचान हो जाये

दर्द यूँ समेटे खुशियों के आँचल में कि

ये दर्द ही जिंदगी का उपहार हो जाये...

Saturday 2 April 2011

''एक सच्ची दास्तां ''


उनकी आँखों में छलकता दर्द,

लरजते आंसू,बिखरते शब्द

मानों कुछ कह रहे है

मगर लब साथ नहीं दे रहे,

लड़खड़ाते कदम, मुरझाया बदन,

सिमटती सांसे,धड़कता दिल

मानों कुछ कह रहा है, मगर किसे कहे,

तड़फते अरमान, अनसुलझे सवाल,

दबी-दबी आह, सूनी-सूनी राह

मानों ढूँढ रही है किसी अपने को

मगर कोई अपना नहीं,

वो बेबसी और लाचारी से निहार रहे है,

सामने बने बंगले की ओर,

भींग रही है आँखों की कोर,

सबसे बेख़बर कि कोई

उनके चेहरे पर उभरती हुई

संवेदनाओ को बड़ी संजीदगी से देख रहा है,

मेरा अंतर्मन तड़फ उठा, मै पास गई ओर बोली-

बाबा आप तन्हा ओर खामोश कब से

उस बंगले की ओर उम्मीद लगाये बैठे है,

क्या जान सकती हूँ.. मै दर्द आपका ?

बाबा ने ख़ामोशी तोड़ी और

एक लम्बी आह भरके बोले..

बेटा वो बंगला कभी मेरा था,

जिसमे खुशियों का बसेरा था,

मेहनत से बच्चों को पाला था,

बिन माँ के ही संभाला था,

लेकिन आज वक़्त ये आया है,

अपनों से ही धोखा खाया है,

सोच रहा हूँ.. क्या इसी दिन के लिए

इंसान औलाद चाहता है,

उनकी खुशियों की खातिर

खुद की खुशियाँ लुटाता है,

आंसू छलक पड़े बूढ़ी आँखों से,

लाठी लुढ़क गई हाथो से, बोले-

अगर बुढ़ापे का अंजाम है यही तो

आख़िर क्यों चाहते है संतान सभी....

उनकी दर्द भरी दास्तां सुनकर

मै निरुत्तर हो गई .....

खुशियों का सबब जाना.. 


ठोकर लगी हमें जिस पत्थर से

उसी को अपना खुदा माना,

हर ठोकर ने राह दिखाई

जीने का सबब जाना,

जब-जब दिल पर तीर चला

रामबाण हमने माना,

हर दर्द बना हमदर्द हमारा

खुशियों का सबब जाना..

किस्मत भी मुस्कायेगी


उम्मीद का दामन थामे रखना

किस्मत भी मुस्कायेगी

बैठ न जाना हार के साथी

कभी तो मंजिल आयेगी,

माना दुनिया पग-पग पर

कांटे भी बिछाएगी

रख हौसला बढ़ते जाना

फूल भी वही खिलायेगी,

जीवन संघर्षो की कहानी

इतिहास नया रचायेगी

खुद पे भरोसा रखना साथी

तकदीर भी संवर जायेगी...

जीवन क्या है??????

जीवन क्या है नाज़ुक शीशा

गिरकर फूट जाना है,

साँसों का बंधन भी रूह से

एक दिन छूट जाना है,

जीवन से जिस्म का रिश्ता,

पल में रूठ जाना है ,

रंगीन ख्वाबों का खज़ाना

एक दिन लूट जाना है,

यही हकीकत यही फ़साना,

छोड़ के एक दिन जाना है,

इस जीवन की परिभाषा का

बस इतना ही अफसाना है,

जीवन उसी ने जीया है

राज़ ये जिसने जाना है,

बीत ना जाये यूँही जीवन

हर पल को आज़माना है.

जीवन क्या है नाज़ुक शीशा

गिरकर फूट जाना है...

ऐ मेरे दिल बता- क्यों तू आज उदास है... 


ऐ मेरे दिल बता-

क्यों तू आज उदास है

सब तो तेरे पास है,

खुशियों का अहसास है,

फिर क्यूँ आज उदास है

सूना है मन का आँगन

मुझसे रूठा आज ये मन

कैसे इसे मनाऊं मै

क्या कहकर बहलाऊं मै

तू जाने सब भेद ऐ दिल

तुझसे ही तो आस है

ऐ मेरे दिल बता -

क्यों तू आज उदास है,

चेहरा है आइना तेरा

ऐ मेरे दिले नादान

क्यों तू इसके रंग बदलता

करता है फरमान

तेरी हर उलझन पर अब तो

अटकी मेरी साँस है,

ऐ मेरे दिल बता-

क्यों तू आज उदास है...

सूनामी से तबाही......2011


कैसे लिखू अब दर्द कलम से

स्याही नहीं अब आंसू है इसमें

हाय सुनामी की बेदर्द तबाही

कितनो को लील लिया इसने,

क्या तूफ़ा कैसा मंज़र था

सैलाब दिलो के अन्दर था

लाखों उम्मीदे दब गई

बगावत पर समंदर था.

"गरीब की होली"

धूल में लिपटे हुए

एक मासूम ने रोते हुए

अपनी माँ से कहा-

माँ ये रंग-बिरंगे रंग

मुझे भी ला दो ना

एक पिचकारी मुझे भी दिला दो ना

माँ ने गोद में उसे उठाया

और प्यार से गले लगाया

फिर बोली सुन मेरे नन्हे

ये रंग तो सब नकली है

तू इनकी जिद्द ना कर

यूँ समझाया उसे बिठाया

और धरती से मिटटी उठाकर

उसके चेहरे पे रंग लगाया बोली-

देख ये रंग असली है बेटा,

नज़रे छुपाकर आंसू पोंछे

अपनी गरीबी को वो कोसे

नन्हा मासूम कहे रो-रोकर

माँ तुम मुझे यूँ ही बहलाती हो,

ये तो बस मिटटी है,

तुम यो ही मुझे समझाती हो

माँ बोली सुन मेरे लाडले

ये मिटटी नहीं साधारण है

सबसे अनोखा रंग है इसका

ये मिटटी तो पावन है

सबके लिए ये एक रूप है

और सबकी मन भावन है....

Friday 11 February 2011

कभी हमसे बेवफाई तुम ना करना

आज बैठे है पलके बिछाये

कल न मिले तो गम ना करना

आज वफ़ा करते है तुमसे

कल न करे तो दम ना भरना

आज देखते राह तुम्हारी

कल न रुके तो गम ना करना

आज नेह के दीप जले है

कल ये उजाला कम नाकरना

आज बसे है आँखों में हम

कल अश्को में बहा के नम ना करना

आज मिलन की चाह है तुमसे

कल बिछड़ गए तो सितम ना करना

जहाँ रहो खुश रहो मगर

कभी हमसे बेवफाई तुम ना करना

कभी आदि तो कभी अंत है


पतझड़ में जब पेड़ से पत्ते

सूख कर झड जाते है

गिर के धरा पर न जाने वो

फिर कहाँ उड़ जाते है

हरे-भरे लहराते वृक्ष ये

ठूंठ से बन जाते है,

कभी वृक्ष ये फूल ये पत्ते

ख़ुशी से लहराते है

कभी कष्टों की आंधी में ये

टूट के बिखर जाते है

कभी ख़ुशी है कभी उदासी

सीख हमें दे जाते है

हर हालत में डटे रहो

हर पल ये समझाते है

फिर से सूने वृक्षों पर जब

नव कोंपल खिल जाता है

बसंत के आते ही प्रकृति को

नव जीवन मिल जाता है

कुछ खोकर के कुछ पाना है

यही तो जग का नियम है

कभी धूप तो कभी छाँव है

इसी का नाम तो जीवन है

जीवन का मौसम भी यूँही

पतझड़ तो कभी बसंत है

यही सृष्टी की सच्चाई है

कभी आदि तो कभी अंत है

प्रकृति का प्रतिबिम्ब है नारी


सूरज सी तपती है नारी

गगन सी झुकती है नारी

पवन सी चलती है नारी

प्रकृति का प्रतिबिम्ब है नारी

गंगा सी छलकती है नारी

फूलों सी महकती है नारी

बादल सी बरसती है नारी

प्रकृति का प्रतिबिम्ब है नारी

धरती सी सहती है नारी

वृक्षों सी फलती है नारी

धूप-छाँव सी ढलती नारी

प्रकृति का प्रतिबिम्ब है नारी

शूलो से गुज़रती है नारी

रंगों सी निखरती है नारी

खुशबू सी बिखरती है नारी॥

प्रकृति का प्रतिबिम्ब है नारी

बातें तो होती है बातें

बातें तो होती है बातें

इधर की बातें उधर की बातें

बिन हवा उड़ जाती बातें,

महफ़िल में रंग जमाती बातें

अच्छी हो या बूरी बातें

...ज़ुबा का स्वाद बढ़ाती बातें,

रस ले-लेकर होती बातें

जब किसी की आती बातें,

कौन बूरा है कौन भला है

ये निर्णय सुनाती बातें,

बिना लक्ष्य की,बिना अर्थ की

बे- सिरपैर की होती बातें,

जीवन में कुछ लक्ष्य है जिनके

वक़्त न उनका गंवाती बातें.....

गणतंत्र


हक़ छीन के जनता का

क्या गणतंत्र मनाएंगे ?

गणतंत्र की परिभाषा को

कब समझ सब पायेंगे ?

राज नेताओ की दोहरी नीति

कैसे अन्याय मिटायेंगे ?

जनहित के दावे करते है

क्या वादों को निभाएंगे ?

महंगाई ने बजट बिगाड़ा

देश को कैसे चलाएंगे ?

दो वक़्त जों मिले न रोटी

तो क्या गणतंत्र बचायेंगे ?

इन सवालो में उलझे है

जवाब कहाँ से लायेंगे ?

आज़ादी के अस्तित्व का

स्वर्णिम काल कहाँ से लायें...

बंधन टूट गए


उसने जब हमको तडफाया तो हम टूट गए

फिर जब उसने टूट के चाहा तो हम रूठ गए,

ना वो भूले ना हम भूले मगर, ख़ामोशी से ,

प्रीत और विश्वास के बंधन धीरे-धीरे टूट गए

'' रैन''