Sunday 5 March 2017

ग़ज़ल


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Wednesday 30 May 2012

"हर पन्ने को सहेजा है"


पन्नो में बिखरे अरमान मेरे, और हर पन्ने को सहेजा है, उनमे बसी मेरी धड़कन और, हर शब्द-शब्द में लहजा है, दर्द ख़ुशी सब उनमे सिमटा, मन जब तन्हाई में उलझा है, लिख-लिखकर कई बार मिटाया, भावो का द्वंद्ध फिर सुलझा है, हर पल स्याही से कैद किया, हर उलझन को बूझा है, मेरी प्यारी सखी सहेली, कलम है, ना कोई दूजा है...*रेनू*

Monday 5 December 2011

जरुरत बना दिया..

अनगढ़े एक पत्त्थर को मूरत बना दिया,
उसे तराशा और सबसे खूबसूरत बना दिया
मालूम न थी कीमत खुद की मगर, उसे
मंदिर में बिठाकर सबकी जरुरत बना दिया..

एक नयी सुबह



सूरज की पहली किरण के साथ
आँख खुलते ही ज्योंहीं
मैंने खिड़की का पर्दा हटाया
देखा सूरज की रोशनी
बादलो को चीरती हुई वृक्ष के बीच से
छन कर मेरे चेहरे पर आ पसरी
एक नयी चमक के साथ
एक नयी उम्मीद के साथ
पूरे कमरे में उजाला कर गई,
मानों किरणों की चादर ने
अंधेरो की खामोशियों को ढक लिया हो जैसे
बीते कल की सारी चिंताओं को खुशियों की चादर ने
अपने भीतर समेट लिया हो,
सारी कायनात एक नयी रोशनी के साथ जगमगा उठी
एक नयी सुबह के नए सफ़र के साथ,
प्रकृति के इस सुन्दर सन्देश के साथ ही
मैं उठी और धन्यवाद दिया उस भगवान को
जिन्होंने प्रकृति के कई रूपों द्वारा
हमें जीवन जीने का सन्देश दिया,
आशाओ की ज़मी और उमंगो का आसमां दिया....
हर नयी सुबह के साथ एक नया पैगाम दिया.

आंसू



*सुख और दुःख में बहते आंसू
सदा संग ही रहते आंसू
ख़ुशी का पल या गम की आंधी
हर अहसास में बहते आंसू,
*तन्हाई में रहते आंसू
कभी-कभी तो छलते आंसू
दिल की दीवारे भेद कर
छलक के फिर बहते आंसू,
*बिछड़ के आ जाते आंसू
मिलन में न रुक पाते आंसू
बहते आंसू जब क़ोई पौंछे
राज़ बयां कर जाते आंसू,
*ख़ुशी के हो या गम के आंसू
एक से होते है ये आंसू
बड़ी अनोखी इनकी भाषा
कहे बिना सब कहते आंसू...

''एक अकेला'

उसकी झील सी आँखों में
ना जाने क्या बात थी,
सबसे जुदा वो
तन्हा और उदास थी,
महसूस किया मैंने शायद
किसी अपने की तलाश थी,
तोडा है दिल किसी ने,
या खुद से ही निराश थी,
उन आँखों के उदास पन्नो में
सवाल उलझ कर रह गये
ख़ामोशी में लिपटे पन्ने
जाने क्या-क्या कह गए,
फिर सूनी आँखों से
जब सारे आंसू बह गये
बिन कहे ही उसके दर्द की
सारी कहानी कह गये ..

''गरीबी का दर्द ''





आँगन में फटी चटाई
एक टूटी सी चारपाई
भूख से बच्चे बिलख रहे है
और चूल्हा फूंकती माई,
भूखे बच्चो की रुलाई
हाय कैसे करे भरपाई
बीमारी ने डेरा डाला
और मार गई महंगाई,
अभिशप्त गरीबी आई
ये कैसी उदासी लाई
हर ख़ुशी को तरसे नैना
ये है कडवी सच्चाई,
रब ने सारी दुनिया बनाई
भेद ये कैसा, कैसी खुदाई
दर्द गरीबी का है या
है किस्मत की बेवफ़ाई