Saturday 2 April 2011

"गरीब की होली"

धूल में लिपटे हुए

एक मासूम ने रोते हुए

अपनी माँ से कहा-

माँ ये रंग-बिरंगे रंग

मुझे भी ला दो ना

एक पिचकारी मुझे भी दिला दो ना

माँ ने गोद में उसे उठाया

और प्यार से गले लगाया

फिर बोली सुन मेरे नन्हे

ये रंग तो सब नकली है

तू इनकी जिद्द ना कर

यूँ समझाया उसे बिठाया

और धरती से मिटटी उठाकर

उसके चेहरे पे रंग लगाया बोली-

देख ये रंग असली है बेटा,

नज़रे छुपाकर आंसू पोंछे

अपनी गरीबी को वो कोसे

नन्हा मासूम कहे रो-रोकर

माँ तुम मुझे यूँ ही बहलाती हो,

ये तो बस मिटटी है,

तुम यो ही मुझे समझाती हो

माँ बोली सुन मेरे लाडले

ये मिटटी नहीं साधारण है

सबसे अनोखा रंग है इसका

ये मिटटी तो पावन है

सबके लिए ये एक रूप है

और सबकी मन भावन है....

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