Saturday 26 June 2010

फिर क्यों अधूरी आज की नारी.

अरमानो की सेज पर एक सिसकती आह,
आसमान को छूने की फिर भी अटूट चाह,
अपने अस्तित्व को पाने की ढूँढती है राह,
कितनी सुन्दर कितनी न्यारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी.
जग भर के शोषण की मारी ,
रिश्तों के चक्र में घूमती नारी,
तोड़ चुकी अब जंजीरे सारी,
कभी थकती कभी हारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी,
बेदर्द जहां में वफ़ा निभाती,
घर और देश पे राज चलाती,
प्रलय बनकर झूंजती जाती,
हर कष्टों से लडती नारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी.
दुनियां की तकदीर है नारी,
ममता की तस्वीर है नारी,
त्याग और बलिदान है नारी,
कितनी पावन कितनी प्यारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी.
अब इंतज़ार है इंतकाम का नारी की आँखों को,
पुरूषों के अहम् को मिटाके जों खोल दे अपनी पांखो को
जिसने नारी के वज़ूद पर अधूरी छाप लगाईं है,
नारी के कोमल हर्दय में विद्रोह की ज्वाला जलाई है
मिलेगा एक दिन हक़ नारी को सबने कसम ये खाई है
धरती क्या अम्बर भी झुकेगा, ये सदियाँ अब वक़्त हमारा लाई है.

'कन्या भ्रूण की माँ से गुज़ारिश

हमारे देश में नारी को चाहे जितना ऊँचा दर्जा दिया जाए लेकिन ''लावारिश कन्या भ्रूण'' की बढती संख्या ने ये साबित कर दिया है की आज भी कुछ लोग चाहे गरीबी के कारण हो चाहे परिस्थिति के कारण हो अपनी मानसिकता नहीं बदल पाए है, राजस्थान के न्यूज़ पपर में आये दिन ये ख़बर पड़ने को मिल जाती है और इसके पीछे मूल कारण नारी की ही कमज़ोरी है, जब तक एक औरत दूसरी औरत के आत्मरक्षा आत्मसम्मान के वचन को नहीं निभाएगी तब तक ये घिनौना कार्य थमने का नाम नहीं लेगा, इसीलिए हमें सर्वप्रथम नारी को जागरूक करने की जरुरत है की पुरूषों को दोषी ठहराने की. बेटी की माँ से खुद को बचाने की गुजारिश के मार्मिक क्षणों से चित्रित है ये कविता..
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माँ तेरी ममता की परीक्षा आज ये बेटी लेती है,
कोख मै है मजबूर है ये पर आज ये तुमसे कहती है.
तेरे जिगर का टुकड़ा हूँ माँ मुझे तुझ पर विश्वास है ,
तू समझेगी मेरी व्यथा बस मुझको पूरी आस है.
चाहे कोई तुझको समझाए या मेरे विरोध में बहकाए,
बंधन ये मजबूत हो इतना की कोई हमको जुदा कर पाए.
माँ तू माँ है अपनी ममता पर वार होने देना,
मुझे दुनियां में लाना माँ, ममता को बदनाम होने देना.
दुनियां को दिखा देना की माँ बेटी का रिश्ता कितना प्यारा है,
सन्देश मिले हर माँ को ये की बेटी सबका सहारा है .

अच्छा लगता है

"अच्छा लगता है"

किसी को खयालों में लाना अच्छा लगता है,
किसी के ख्वाबों में खो जाना अच्छा लगता है,
सावन की बहारो में तराना अच्छा लगता है,
उमड़ घुमड़ के बदली हो जाना अच्छा लगता है,
सिमट के खुद की बांहों में सो जाना अच्छा लगता है,
किसी का यूँ अपना हो जाना अच्छा लगता है,
तारे गिन-गिन रात बिताना अच्छा लगता है,
चांदनी रातों में खो जाना अच्छा लगता है ,
किसी से मिलन का स्वप्न सजाना अच्छा लगता है
जुदाई की घड़ियों में रो जाना अच्छा लगता है,
किसी की ख़ातिर आँख चुराना अच्छा लगता है,
तन्हा रहना खुद को छुपाना अच्छा लगता है ,
दीदार और इंतज़ार अब अच्छा लगता है ,
किसी के अहसासों से दिल बहलाना अच्छा लगता है,
किसी की दुवाओ में रहना अब अच्छा लगता है ,
सब कुछ खोकर खुद को मिटाना अच्छा लगता है ,
रंगीन कल्पनाओं में समाना अच्छा लगता है,
किसी कवि की कविता हो जाना अच्छा लगता है,
कोरा काग़ज और कलम बन जाना अच्छा लगता है,
दिल के अरमां शब्दों में पिरोना अच्छा लगता है .

Saturday 12 June 2010


"खामोश मुहब्बत"

उनके खयालों से अब हमें फुर्सत कहाँ,
हमें खुद ख़बर नहीं हम आ गए जहाँ,
ना सोते है नैन दिल रहता है बैचैन,
बीत जाते है यूँही कब दिन रैन यहाँ
हम बेख़बर है अपनी ही अदाओ से,
खुद को भूल रहे है उनकी वफ़ाओ से
न रास्तो की ख़बर है न मंजिल की,
बह रहे है क्यों गुमनाम हवाओं से,
ख़ामोश मोहब्बत का पैगाम क्या होगा,
सोचा न कभी इसका अंजाम क्या होगा
चले जा रहे है यूँही अनजानी राहों पर,
चाहत का इससे बड़ा इम्तहान क्या होगा