Monday 29 November 2010

''राखी खुशियों का उपहार'


रेशम की डोरी से बंधा है

भाई बहन का प्यार ,

खुशियों का उपहार है ये

राखी का त्यौहार,

धागों का बंधन है ये

जन्मों का संस्कार,

भाई-बहन के प्रीत के साखी

राखी के दो तार,

बहनों का अरमान यही

हो भैया का सुखी संसार,

और भाई की चाहत इतनी

खुश हो बहना का परिवार,

बहन नहीं जिस भाई की

तो उसका सूना है त्यौहार,

वो बहना भी है अधूरी

जिसे न मिले भाई का प्यार

प्रीत का बंधन रक्षा बंधन

कभी ये बंधन छूटे ना,

भाई बहन की पवित्र दुनियां में

कोई सपना टूटे ना,

युगों -युगों तक चलता रहेगा

राखी का पावन त्यौहार,

इस धरती पर अमर रहे सदा

भाई-बहन का प्यार.

कभी ऐसा भी होता है...

भीड़ मै है पर तन्हाई है,

कभी ऐसा भी होता है.

लभ खामोश पर दिल में दुहाई है,

कभी ऐसा भी होता है.

आँखे हंसती दिल रोता है,

कभी ऐसा भी होता है.

मन जागे पर तन सोता है,

कभी ऐसा भी होता है

मिलन की आस पर दूर बसेरा,

कभी ऐसा भी होता है.

रात चांदनी पर दिल मे अँधेरा,

कभी ऐसा भी होता है,

तुफा है पर कश्ती नहीं है,

कभी ऐसा भी होता है.

राहें जुदा पर मंजिल वही है,

कभी ऐसा भी होता है.

नींद वही पर ख्वाब नया है,

कभी ऐसा भी होता है.

लब्ज वही पर अंदाज़ नया है,

कभी ऐसा भी होता है.

सागर है पर प्यास न बुझती,

कभी ऐसा भी होता है.

दौलत है पर काम न आती,

कभी ऐसा भी होता है.

हम है पर खुद में नहीं है,

कभी ऐसा भी होता है.

जों हम चाहे मिलता नहीं है,

कभी ऐसा भी होता है...

Monday 22 November 2010

''खुद खुदा बन जायेगा''


इंसा स्वयं को आंक ले

अपने भीतर झांक ले,

तो खुद खुदा बन जायेगा,

दृष्टि अपनी नाप ले,

सच्चाई को भांप ले,

तो खुद खुदा बन जायेगा,

मन की आँखों से काम ले,

सदगुण का दामन थाम ले,

तो खुद खुदा बन जायेगा,

नजरो का फेर ये जानले,

अच्छी है दुनियां मानले,

तो खुद खुदा बन जायेगा,

सत्पथ पर पग को मोडले,

न्याय ईश्वर पर छोड़ दे,

तो खुद खुदा बन जायेगा.

''दर्द कविता रचता है''

चेहरे पर मुस्कान बिखेरे

दर्द तो दिल में रहता है,

लब रहे खामोश मगर

अंदाज़ तो सब कुछ कहता है,

हंसती हुई पलकों में भी

गम का बादल रहता है,

तूफ़ानी मंज़र से गुज़र कर

दर्द का दरियाँ बहता है,

तपकर दर्द के शोलों में

अरमां दिल का निखरता है,

दर्द के आंसू की स्याही से

हर शब्द कविता बनता है....

माँ बाप का सम्मान नहीं सोचो क्या यही संस्कृति हमारी है??????????? 


हाथ थाम कर चलो लाडले वरना तुम गिर जाओगे,

आँख के तारे हो दुलारे हमको दुखी कर जाओगे,

राजा बेटा पढ़ लिख कर तुम्हे बड़ा आदमी बनना है,

नाम कमाना है दुनियां में कुल को रोशन करना है,

सब कुछ गिरवी रखकर माँ बाप ने उसे पढाया,

जी सके वो शान जग में इस काबिल उसे बनाया,

बड़ा ऑफिसर बन गया बेटा माँ बाप की खुशियाँ चहकी,

सब दुःख दूर हमारे होंगे ऐसी उम्मीदे महकी,

बड़ी ख़ुशी से सुन्दर कन्या से उसका ब्याह रचाया,

ढोल नगाड़े शहनाई संग दुल्हन घर में लाया,

कुछ बरस में नन्हा पोता घर आँगन में आया,

लेकिन बेटा रहा न अपना जिस पर सब लुटाया,

एक दिन बेटा बोला माँ से माँ ये सब कुछ मेरा है,

मैने कमाया मैने बनाया ये नहीं तुम्हारा डेरा है,

माँ बोली बेटा तुम मेरे, घर मेरा है, फिर हममे कौन पराया है,

तुमसे ही है हमारी खुशियाँ मुश्किल से तुम्हे पाया है,

माँ-बापू के आंसू उसके दिल को ना पिघला पाये ,

उनकी कोमल ममता पर पत्थर भी बरसाये,

फिर बोला सामान बांधलो वृधाश्रम छोड़ आता हूँ,

हम भी सुखी रहे तुम भी सुखी रहो बस यही मै चाहता हूँ,

सुन्न हो गया अंतर्मन माँ-बाबा अब क्या बोले,

भूल हुई है क्या हमसे अपने अन्दर ये टटोले,

दोनों सोचे क्या अब कोई जग में नहीं सहारा है,

बिछड़ के संतान से हमने अपना सब कुछ हारा है ,

फिर भी नहीं शिकायत कोई आखिर अपना खून है,

वो न समझे दिल की व्यथा पर अपने आँगन का फूल है,

पोते को दुलराया और कातर नजरों से देखा,

कुछ क्षण रुक कर बोले, हमें कुछ तुमसे कहना है,

अपने मम्मी -पापा की बेटा हरदम सेवा करना,

दुःख में सुख में हर हालत में तुम हाथ थाम कर रखना,

खुश रहो मुस्काओ हरपल दुआ यही हमारी है,

शायद तुम ना समझोगे कि तुमसे दुनियां सारी है,

कैसी विडंबना है रिश्तों की ममता भी चित्कारी है,

बुजूर्गो का सम्मान नहीं सोचो क्या यही संस्कृति हमारी है??????????? 

Friday 13 August 2010

"आज़ादी का मान कहाँ"


आज़ादी तो मिल गई पर,
फिर भी हम आज़ाद कहाँ?
धरती सारी खिल गई पर,
फिर भी हम आबाद कहाँ ,
विज्ञान से दुनियां हिल गई पर,
हो गया बर्बाद जहाँ,
उन्नति की
राहें मिल गई पर,
हैवानियत का नाद यहाँ,
जीने को सब जी रहे पर,
मानवता है आज कहाँ,
राजनीती के पलड़े भारी ,
चले अधर्म का राज यहाँ,
कानून है गूंगा बहरा
फिर,
कोई करे फ़रियाद कहाँ,
चाँद तारों को छू आये पर,
वतन का अपने मान कहाँ,
देश के खातिर शहीद हुए जों,
उनका भी सम्मान कहाँ।

''गौमाता की चीत्कार''


एक दर्द भरी चीत्कार चली गर्दन पर कट्टार,
दिल न दहला मानवता का देख गौमाता पर वार,
जाने क्या हो गया है आज के इस इंसान को,
अपनी क्रूर कट्टार से धोखा दे रहे भगवान को,
हर तरफ हें रक्त रंजित धरती पर सिसकारियां,
भारत माँ चीत्कार रही इंसा की देख हैवानियाँ,
जिस देश में गौमाता को आदर से पूजा जाता है,
आज उसी भूमि पर उनको बेदर्दी से मारा जाता है,
न जाने इंसान में क्यों इतनी दानवता भर गई,
पशुओं से तुलना क्या करे सबकी मानवता मर गई,
मूक बेकसूर पशुओं पर कोई कट्टार चलाये ना
सबको हक़ है जीने का ये बात कोई भुलाये ना,
जियो और जीने दो के सिद्दांत को अपनाये हम,
अहिंसा को अपनाकर गौमाता को बचाए हम.

बंधन


मधुर स्नेहिल बंधन
बाँधते है दिलों को
जोड़ते है पीढियों को
ये बंधन जिंदगी के आधार
है,
इनके अस्तित्व से संसार है,
सारी दुनियां बंधी है
इन बन्धनों की डोर से
ये बंधन है प्यार के
बंधन,
विश्वास के बंधन ,
रिश्तों के बंधन ,
मर्यादाओ के बंधन
जो हमने खुद बांधे है ,
ये बंधन है
समर्पण का अहसास,
एक दूजे का विश्वास,
इसीलिए ये बंधन
कुछ होते है खास....
....

Saturday 31 July 2010

जीवन अर्पण कर जाऊं

इंतज़ार है उन राहो का,
जिनसे अम्बर छू जाऊं,
खुशियाँ समेटू सबके ,
लिए और धरती पर मै ले आऊं,
दुखी जनों की पीड़ा में,
सुख की छावं मै बन जाऊं,
कभी उजड़े चमन किसीका ,
ऐसा गाँव मै बन जाऊं,
वतन हमारा स्वर्ग बने,
मै वो फुलवारी बन जाऊं ,
मुस्कान रहे हर चेहरे पर,
ये स्वर्णिम स्वप्न सजाऊ,
दिल टूटे कभी किसीका,
ऐसा बंधन बन जाऊं ,
नफरत का अँधेरा रहे जग में,
स्नेह से रोशन दीप जलाऊं,
तेरा जीवन तुझको अर्पण,
तेरे लिए मै कर जाऊं ,
तन- मन रहे समर्पित मेरा,
खुद को न्योछावर कर जाऊं.......

जिंदगी रुकी-रुकी सी है

राहें थमी-थमी सी है,

दिल में गमी-गमी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

फिर भी कमी-कमी सी है।

जिंदगी रुकी-रुकी सी है,

उम्मीदे झुकी-झुकी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

उमंगें थकी-थकी सी है,

आंहे दबी-दबी सी है,

खुशियाँ डूबी-डूबी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर ,

आँखे नमी-नमी सी है,

ग़मगीन हर कली सी है,

वीरान हर गली सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

रिश्तो में खलबली सी है,

सरगम डरी-डरी सी है ,

धड़कन भरी-भरी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

ख्वाहिशें मरी -मरी सी है।

Monday 12 July 2010

''वक़्त''


वक़्त फ़साना है जीवन में साँसों की रफ़्तार का,
कभी राहों में कांटे है तो कभी है दामन प्यार का,
वक़्त की शतरंज पर बिछा है खेल इस संसार का,
वक़्त ही करता फैसला कभी जीत कभी हार का.
वक़्त से उम्मीदे अपनी वक़्त के साथ है आशाए,
वक़्त के साथ दौड़ हमारी वक़्त के साथ है बाधाए,
वक़्त फूल है उपवन का खिलकर फिर ये मुरझाए,
वक़्त शूल है जीवन का कब सीने में चुभ जाए.
वक़्त की इन आंधियो में अपना सब खो जाता है,
एक बार जो बीत गया फिर लौट के आता है,
वक़्त गुजर जाता है बस सपना सा रह जाता है,
वक़्त मिलाता है सबको वक़्त जुदा कर जाता है.
वक़्त के इशारों पर चलते है सूरज चाँद सितारे भी,
रात दिवस है वक़्त की नैमत पतझड़ और बहारे भी,
वक़्त के आगे सब बेबस है राजा रंक जहान भी,
वक़्त बनाये किसी को दानव कोई बनता भगवान भी,
वक़्त किसे कब कहाँ ले जाये वक़्त का पलड़ा भारी है,
किसे कब ये दगा दे जाये सारी दुनिया इसकी मारी है,
वक़्त के साथ चलते रहे तो बेशक जीत हमारी है,
छूट जाये वक़्त थामले दौलत यहीं हमारी है
.वक़्त यही सिखाता हमको आओ हम ये पाठ ले,
हर पल है अनमोल हमारा जीवन यूहीं काट ले
वक़्त से सुख-दुःख और ख़ुशी गम आओ मिलकर बाँट ले,
वक़्त की गठरी से आओ हम अपनी खुशियाँ छांट ले.

Tuesday 6 July 2010


''
धरती और बादल की प्रेमकहानी ''
धरती कहती है बादल से प्रियतम मेरे जाओ,
प्रेम अगन में झुलस रही हूँ नेह नीर बरसा जाओ,
मेरे पतझड़ से जीवन में बसंत बहार तुम ले आओ,
गरज-गरज कर गीत सुनाओ उमड़-घुमड़ के बरस जाओ.
दीवानी हूँ प्रियतम तेरी पल -पल में इंतज़ार करू,
प्यासा मेरा तन -मन है कब तक अब मै धीर धरूँ,
दर्पण निहारु तुम आओ तो रूप का मै श्रृंगार करू,
तेरी सिंदूरी बूंदों से मै अपनी सूनी मांग भरूं.

अधीर नैन मेरे वाट निहारे क्यों मुझको तड़पाते हो,
कब से तुझे पुकार रही हूँ बादल क्यों नहीं आते हो ,
सदियों से है प्रेम हमारा क्यों विरह दे जाते हो,
सूख रही है दिल की बगियाँ क्यों मुझको तरसाते हो.
बादल बोला प्रिये तुमसे मिलन को मै भी तरसा हूँ,
तेरी जुदाई में आँखों से बरखा बनकर बरसा हूँ ,
तेरे आँसुओ को प्रिये मै अपने सीने मै भरता हूँ ,
आंसू से अमृत बनाकर तेरी पीड़ा को हरता हूँ ,

मिलन बादल और धरती का निस्वार्थ प्रेम कहानी है,
एक दूजे के प्यार का ज़ज्बा, ये सच्ची कुर्बानी है !

Saturday 26 June 2010

फिर क्यों अधूरी आज की नारी.

अरमानो की सेज पर एक सिसकती आह,
आसमान को छूने की फिर भी अटूट चाह,
अपने अस्तित्व को पाने की ढूँढती है राह,
कितनी सुन्दर कितनी न्यारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी.
जग भर के शोषण की मारी ,
रिश्तों के चक्र में घूमती नारी,
तोड़ चुकी अब जंजीरे सारी,
कभी थकती कभी हारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी,
बेदर्द जहां में वफ़ा निभाती,
घर और देश पे राज चलाती,
प्रलय बनकर झूंजती जाती,
हर कष्टों से लडती नारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी.
दुनियां की तकदीर है नारी,
ममता की तस्वीर है नारी,
त्याग और बलिदान है नारी,
कितनी पावन कितनी प्यारी,
फिर क्यों अधूरी आज की नारी.
अब इंतज़ार है इंतकाम का नारी की आँखों को,
पुरूषों के अहम् को मिटाके जों खोल दे अपनी पांखो को
जिसने नारी के वज़ूद पर अधूरी छाप लगाईं है,
नारी के कोमल हर्दय में विद्रोह की ज्वाला जलाई है
मिलेगा एक दिन हक़ नारी को सबने कसम ये खाई है
धरती क्या अम्बर भी झुकेगा, ये सदियाँ अब वक़्त हमारा लाई है.