Tuesday 6 July 2010


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धरती और बादल की प्रेमकहानी ''
धरती कहती है बादल से प्रियतम मेरे जाओ,
प्रेम अगन में झुलस रही हूँ नेह नीर बरसा जाओ,
मेरे पतझड़ से जीवन में बसंत बहार तुम ले आओ,
गरज-गरज कर गीत सुनाओ उमड़-घुमड़ के बरस जाओ.
दीवानी हूँ प्रियतम तेरी पल -पल में इंतज़ार करू,
प्यासा मेरा तन -मन है कब तक अब मै धीर धरूँ,
दर्पण निहारु तुम आओ तो रूप का मै श्रृंगार करू,
तेरी सिंदूरी बूंदों से मै अपनी सूनी मांग भरूं.

अधीर नैन मेरे वाट निहारे क्यों मुझको तड़पाते हो,
कब से तुझे पुकार रही हूँ बादल क्यों नहीं आते हो ,
सदियों से है प्रेम हमारा क्यों विरह दे जाते हो,
सूख रही है दिल की बगियाँ क्यों मुझको तरसाते हो.
बादल बोला प्रिये तुमसे मिलन को मै भी तरसा हूँ,
तेरी जुदाई में आँखों से बरखा बनकर बरसा हूँ ,
तेरे आँसुओ को प्रिये मै अपने सीने मै भरता हूँ ,
आंसू से अमृत बनाकर तेरी पीड़ा को हरता हूँ ,

मिलन बादल और धरती का निस्वार्थ प्रेम कहानी है,
एक दूजे के प्यार का ज़ज्बा, ये सच्ची कुर्बानी है !

2 comments:

  1. मिलन बादल और धरती का निस्वार्थ प्रेम कहानी है,
    बहुत सुन्दर भाव प्रेम में नि:स्वार्थता तो पहली शर्त है ही.

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