Saturday 12 June 2010


"खामोश मुहब्बत"

उनके खयालों से अब हमें फुर्सत कहाँ,
हमें खुद ख़बर नहीं हम आ गए जहाँ,
ना सोते है नैन दिल रहता है बैचैन,
बीत जाते है यूँही कब दिन रैन यहाँ
हम बेख़बर है अपनी ही अदाओ से,
खुद को भूल रहे है उनकी वफ़ाओ से
न रास्तो की ख़बर है न मंजिल की,
बह रहे है क्यों गुमनाम हवाओं से,
ख़ामोश मोहब्बत का पैगाम क्या होगा,
सोचा न कभी इसका अंजाम क्या होगा
चले जा रहे है यूँही अनजानी राहों पर,
चाहत का इससे बड़ा इम्तहान क्या होगा

2 comments:

  1. khamosh mohabbat ka paigam kya hoga
    socha na kabhi iska anjam kya hoga
    chale ja rahe hain yun hi suni rahon par chahat ka isse bada imthan kya hoga
    behatrin muktak hai badhai sadar

    ReplyDelete