Saturday 31 July 2010

जिंदगी रुकी-रुकी सी है

राहें थमी-थमी सी है,

दिल में गमी-गमी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

फिर भी कमी-कमी सी है।

जिंदगी रुकी-रुकी सी है,

उम्मीदे झुकी-झुकी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

उमंगें थकी-थकी सी है,

आंहे दबी-दबी सी है,

खुशियाँ डूबी-डूबी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर ,

आँखे नमी-नमी सी है,

ग़मगीन हर कली सी है,

वीरान हर गली सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

रिश्तो में खलबली सी है,

सरगम डरी-डरी सी है ,

धड़कन भरी-भरी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

ख्वाहिशें मरी -मरी सी है।

2 comments:

  1. बहुत सुंदर पर इतने गमगीन क्यूं हो दोस्त ।
    दुनिया भली भली सी है
    कलियाँ खिली खिली सी है
    तू कोशिस तो करके देख
    मंजिल मिली मिली सी है ।

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  2. waah asha ji aapne to meri kavita ko apne sundar bhavo se purn kar diya....thanx

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