पतझड़ में जब पेड़ से पत्ते
सूख कर झड जाते है
गिर के धरा पर न जाने वो
फिर कहाँ उड़ जाते है
हरे-भरे लहराते वृक्ष ये
ठूंठ से बन जाते है,
कभी वृक्ष ये फूल ये पत्ते
ख़ुशी से लहराते है
कभी कष्टों की आंधी में ये
टूट के बिखर जाते है
कभी ख़ुशी है कभी उदासी
सीख हमें दे जाते है
हर हालत में डटे रहो
हर पल ये समझाते है
फिर से सूने वृक्षों पर जब
नव कोंपल खिल जाता है
बसंत के आते ही प्रकृति को
नव जीवन मिल जाता है
कुछ खोकर के कुछ पाना है
यही तो जग का नियम है
कभी धूप तो कभी छाँव है
इसी का नाम तो जीवन है
जीवन का मौसम भी यूँही
पतझड़ तो कभी बसंत है
यही सृष्टी की सच्चाई है
कभी आदि तो कभी अंत है
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