कैसे लिखू अब दर्द कलम से
स्याही नहीं अब आंसू है इसमें
हाय सुनामी की बेदर्द तबाही
कितनो को लील लिया इसने,
क्या तूफ़ा कैसा मंज़र था
सैलाब दिलो के अन्दर था
लाखों उम्मीदे दब गई
बगावत पर समंदर था.
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