मंजिल की कशमकश में
उलझ गये है इस कदर
हर तरफ है चौराहा
जाएँ तो जाएँ किधर,
तलाशने निकले सुकूं
भटक रहे है दर ब दर
जहाँ मिलेगी आरज़ू
जाने कहाँ है वो डगर,
दुनिया की इस भीड़ में
खोये हुए है बेख़बर
गुमराह हो गए रास्तों पर
कब तक चलेगा ये सफ़र,
मंजिल की जुस्तजू में हम
चलते रहेंगे उम्र भर
ख्वाहिशो का काफ़िला ये
रुकने न पायेगा मगर,
मुमकिन है ज़िंदगी को
मिल जाये मंजिल अगर
अंजाम हसरतों का ये
थमेगा उसी मोड़ पर...
रेनू सिरोया
good lines..
ReplyDeletethanx ravi parmar ji..
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