तुम प्रणय की माधुरी हो, मेरे मन के मीत हो,
होंठो की बांसुरी हो तुम, साँसों का संगीत हो।
हिचकियों का नाद हो तुम, चित्त की हो चेतना,
सृष्टि का सौंदर्य तुमसे, हृदय की संवेदना,
खुद से ही हारी हूँ प्रियतम,तुम ही मेरी जीत हो।
नील नभ के तुम सितारें,प्यार तुमसे है प्रिये,
मन पटल के तुम हो चंदा,मनुहार तुमसे है प्रिये,
तुमसे मेहंदी और महावर, तुम ही जग की रीत हो।
मुग्ध नैनों में समाये, रूप का दर्पण लिए,
पल मधुर अभिसार के प्रियतम तुम्हें अर्पण किये,
महक तन मन में घुली तुम कुमुदिनी की प्रीत हो।
📝डॉ रेनू सिरोया कुमुदिनी
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