Friday 13 August 2010

"आज़ादी का मान कहाँ"


आज़ादी तो मिल गई पर,
फिर भी हम आज़ाद कहाँ?
धरती सारी खिल गई पर,
फिर भी हम आबाद कहाँ ,
विज्ञान से दुनियां हिल गई पर,
हो गया बर्बाद जहाँ,
उन्नति की
राहें मिल गई पर,
हैवानियत का नाद यहाँ,
जीने को सब जी रहे पर,
मानवता है आज कहाँ,
राजनीती के पलड़े भारी ,
चले अधर्म का राज यहाँ,
कानून है गूंगा बहरा
फिर,
कोई करे फ़रियाद कहाँ,
चाँद तारों को छू आये पर,
वतन का अपने मान कहाँ,
देश के खातिर शहीद हुए जों,
उनका भी सम्मान कहाँ।

''गौमाता की चीत्कार''


एक दर्द भरी चीत्कार चली गर्दन पर कट्टार,
दिल न दहला मानवता का देख गौमाता पर वार,
जाने क्या हो गया है आज के इस इंसान को,
अपनी क्रूर कट्टार से धोखा दे रहे भगवान को,
हर तरफ हें रक्त रंजित धरती पर सिसकारियां,
भारत माँ चीत्कार रही इंसा की देख हैवानियाँ,
जिस देश में गौमाता को आदर से पूजा जाता है,
आज उसी भूमि पर उनको बेदर्दी से मारा जाता है,
न जाने इंसान में क्यों इतनी दानवता भर गई,
पशुओं से तुलना क्या करे सबकी मानवता मर गई,
मूक बेकसूर पशुओं पर कोई कट्टार चलाये ना
सबको हक़ है जीने का ये बात कोई भुलाये ना,
जियो और जीने दो के सिद्दांत को अपनाये हम,
अहिंसा को अपनाकर गौमाता को बचाए हम.

बंधन


मधुर स्नेहिल बंधन
बाँधते है दिलों को
जोड़ते है पीढियों को
ये बंधन जिंदगी के आधार
है,
इनके अस्तित्व से संसार है,
सारी दुनियां बंधी है
इन बन्धनों की डोर से
ये बंधन है प्यार के
बंधन,
विश्वास के बंधन ,
रिश्तों के बंधन ,
मर्यादाओ के बंधन
जो हमने खुद बांधे है ,
ये बंधन है
समर्पण का अहसास,
एक दूजे का विश्वास,
इसीलिए ये बंधन
कुछ होते है खास....
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