Saturday 31 July 2010

जीवन अर्पण कर जाऊं

इंतज़ार है उन राहो का,
जिनसे अम्बर छू जाऊं,
खुशियाँ समेटू सबके ,
लिए और धरती पर मै ले आऊं,
दुखी जनों की पीड़ा में,
सुख की छावं मै बन जाऊं,
कभी उजड़े चमन किसीका ,
ऐसा गाँव मै बन जाऊं,
वतन हमारा स्वर्ग बने,
मै वो फुलवारी बन जाऊं ,
मुस्कान रहे हर चेहरे पर,
ये स्वर्णिम स्वप्न सजाऊ,
दिल टूटे कभी किसीका,
ऐसा बंधन बन जाऊं ,
नफरत का अँधेरा रहे जग में,
स्नेह से रोशन दीप जलाऊं,
तेरा जीवन तुझको अर्पण,
तेरे लिए मै कर जाऊं ,
तन- मन रहे समर्पित मेरा,
खुद को न्योछावर कर जाऊं.......

जिंदगी रुकी-रुकी सी है

राहें थमी-थमी सी है,

दिल में गमी-गमी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

फिर भी कमी-कमी सी है।

जिंदगी रुकी-रुकी सी है,

उम्मीदे झुकी-झुकी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

उमंगें थकी-थकी सी है,

आंहे दबी-दबी सी है,

खुशियाँ डूबी-डूबी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर ,

आँखे नमी-नमी सी है,

ग़मगीन हर कली सी है,

वीरान हर गली सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

रिश्तो में खलबली सी है,

सरगम डरी-डरी सी है ,

धड़कन भरी-भरी सी है,

सब कुछ तो है हर और मगर,

ख्वाहिशें मरी -मरी सी है।

Monday 12 July 2010

''वक़्त''


वक़्त फ़साना है जीवन में साँसों की रफ़्तार का,
कभी राहों में कांटे है तो कभी है दामन प्यार का,
वक़्त की शतरंज पर बिछा है खेल इस संसार का,
वक़्त ही करता फैसला कभी जीत कभी हार का.
वक़्त से उम्मीदे अपनी वक़्त के साथ है आशाए,
वक़्त के साथ दौड़ हमारी वक़्त के साथ है बाधाए,
वक़्त फूल है उपवन का खिलकर फिर ये मुरझाए,
वक़्त शूल है जीवन का कब सीने में चुभ जाए.
वक़्त की इन आंधियो में अपना सब खो जाता है,
एक बार जो बीत गया फिर लौट के आता है,
वक़्त गुजर जाता है बस सपना सा रह जाता है,
वक़्त मिलाता है सबको वक़्त जुदा कर जाता है.
वक़्त के इशारों पर चलते है सूरज चाँद सितारे भी,
रात दिवस है वक़्त की नैमत पतझड़ और बहारे भी,
वक़्त के आगे सब बेबस है राजा रंक जहान भी,
वक़्त बनाये किसी को दानव कोई बनता भगवान भी,
वक़्त किसे कब कहाँ ले जाये वक़्त का पलड़ा भारी है,
किसे कब ये दगा दे जाये सारी दुनिया इसकी मारी है,
वक़्त के साथ चलते रहे तो बेशक जीत हमारी है,
छूट जाये वक़्त थामले दौलत यहीं हमारी है
.वक़्त यही सिखाता हमको आओ हम ये पाठ ले,
हर पल है अनमोल हमारा जीवन यूहीं काट ले
वक़्त से सुख-दुःख और ख़ुशी गम आओ मिलकर बाँट ले,
वक़्त की गठरी से आओ हम अपनी खुशियाँ छांट ले.

Tuesday 6 July 2010


''
धरती और बादल की प्रेमकहानी ''
धरती कहती है बादल से प्रियतम मेरे जाओ,
प्रेम अगन में झुलस रही हूँ नेह नीर बरसा जाओ,
मेरे पतझड़ से जीवन में बसंत बहार तुम ले आओ,
गरज-गरज कर गीत सुनाओ उमड़-घुमड़ के बरस जाओ.
दीवानी हूँ प्रियतम तेरी पल -पल में इंतज़ार करू,
प्यासा मेरा तन -मन है कब तक अब मै धीर धरूँ,
दर्पण निहारु तुम आओ तो रूप का मै श्रृंगार करू,
तेरी सिंदूरी बूंदों से मै अपनी सूनी मांग भरूं.

अधीर नैन मेरे वाट निहारे क्यों मुझको तड़पाते हो,
कब से तुझे पुकार रही हूँ बादल क्यों नहीं आते हो ,
सदियों से है प्रेम हमारा क्यों विरह दे जाते हो,
सूख रही है दिल की बगियाँ क्यों मुझको तरसाते हो.
बादल बोला प्रिये तुमसे मिलन को मै भी तरसा हूँ,
तेरी जुदाई में आँखों से बरखा बनकर बरसा हूँ ,
तेरे आँसुओ को प्रिये मै अपने सीने मै भरता हूँ ,
आंसू से अमृत बनाकर तेरी पीड़ा को हरता हूँ ,

मिलन बादल और धरती का निस्वार्थ प्रेम कहानी है,
एक दूजे के प्यार का ज़ज्बा, ये सच्ची कुर्बानी है !